Monday, November 10, 2008

बोलती तस्वीरें- वृंदावन का वृद्धाश्रम

दीनानाथ (Dinanath)
Photographs are scaled down and subject to copyright

"मैं जब रात को सोता हूँ तो यही प्रार्थना करता हूँ की हे ईश्वर! मेरी आँख फिर कभी न खुले" ये जुबान केवल दीनानाथ की ही नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने बच्चों द्वारा घर से निकाल दिए गए हों जैसे की वे कोई धूल मिटटी हों.

"उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया, बहू कहती है कि मेरी अब उन्हें कोई ज़रूरत नही रही, मैं बूढ़ी अब किसी काम की नही रही"
सुनंदा (Sunanda)
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मैं ऐसे कई घर से बेघर लोगों से मिला, जिनकी आँख आज भी अपने बच्चों को याद कर के भर आती है. मुझसे बात करते हुए सुनंदा जी ने (घर से निकाली गई) अपने आप को बहुत रोकने की कोशिश की पर उनकी आँखें छलक ही आयीं। ऐसे कई लोग हैं जो वृद्धाश्रम में रहते हैं, पर आज जो तस्वीरें मैं आपको दिखा रहा हूँ वो उन लोगों की है जिन्हें या तो उनके बच्चों ने रात के अंधेरे में उन्हें रेलगाड़ी में बिठा दिया (जो कि ये भी नहीं जानते थे कि वे जा कहाँ रहे हैं) या फिर सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया। चौंक गए न आप भी, मुझे भी बहुत बड़ा झटका लगा था जब मैंने इन्हें गुमसुम , लाचार और भीख मांगते पाया वृन्दावन की गलियों में।

सुनंदा ने मुझे बताया कि "एक रात मुझे लेकर मेरे बेटे और बहू में खूब झगड़ा हुआ और तकरीबन एक बजे मेरा बेटा मुझे रेलवे स्टेशन ले आया और मुझे गाड़ी में बिठा दिया। भला हो उस टिकेट चेक करने वाले का कि उसने मुझे वृंदावन उतार दिया "
रामेश्वरी (Rameshwari)
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जानते हैं कि सुनंदा एक बहुत ही संपन्न घर से ताल्लुक रखती है और उसका बेटा दिल्ली की एक प्रतिष्ठित कंपनी में एक अच्छे ओहदे पर है, पर माँ की भूलने की बीमारी और बुढ़ापा उसे इस कदर खटकने लगा कि रातों-रात ट्रेन में बिठा कर छुटकारा पा लिया। धन्य हैं ऐसी संतानें। शायद ऐसी संतानों को भगवान् ने आजीवन जवान रहने का आशीर्वाद दिया है या फिर इन्हें ग़लतफहमी है कि ये कभी बूढ़े नहीं होंगे.

उसी वृद्धाश्रम से रघुबीर (Another old man Raghubeer)
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मनुज मेहता