Wednesday, May 20, 2009

पानी की क़िल्लत

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यह चित्र गर्मी के मौसम का है, जब फोटोग्राफर के शहर लखनऊ में पानी की क़िल्लत थी। कई क्षेत्रों में पानी नहीं आ रहा था। पानी के लिए हर-ओर हाहाकार था। जहाँ एक तरफ शहर पानी की किल्लत का सामना कर रहा था, वही दूसरी ओर लाखों लीटर पानी इस तरह से बह रहा था।


फोटोग्राफर- अनुज अवस्थी।


Wednesday, May 13, 2009

एक मासूम चेहरा


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क्या कहूं न जाने कितने ही अल्फाज़ मेरी सांस के सांस में अटक गए हैं. शायद मेरे पास शब्दों की कमी है आज इस चेहरे और इसमें छुपी संवेदनाओं को लिखने के लिए. ये छोटी सी लड़की एक स्ट्रीट चाइल्ड है, जिसकी ना तो कोई माँ है न ही कोई पिता पर इसके पास संवेदनाओं का एक पहाड़ है जिसे यह बांटना चाहती है किसी के साथ. ये मुझे सड़क के किनारे कुछ इसी के साथ के बच्चों के साथ खेलती मिली, मैंने कुछ समय इसके साथ बिताया और जो कुछ सुना इसके बीते समय और और इसके आज के बारे में तो आँखें भर आयीं. आप खुद देखिये और समझिये की ये चेहरा क्या कह रहा है.

आपका अनुज
मनुज मेहता


Monday, May 11, 2009

ये भी माँ है

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छायाचित्रकार- मनुज मेहता


Friday, May 8, 2009

ज्ञान को कोई दरवाजा कहाँ रोक पाया है

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पुरानी दिल्ली की गलियों में जब भी गुज़रता हूँ तो कई अलग बातों का अनुभव होता है. जैसे की सुना करते थे कि ज्ञान को कोई नहीं रोक सकता, कोई ताकत नहीं छुपा सकती. अब इसे ही देखिये कि एक बंद दरवाज़े पर कितना कुछ लिख दिया गया है, जैसे कि ज़िन्दगी भर का किसी ने जोड़ घटा यहीं निकाल लिया हो.
क्या ज़िन्दगी का फलसफा भी यही नहीं है. कितनी ही चीज़ों कि तरफ तो हम अपने को बंद ही रखते है, शायद प्यार और अपनेपन का भी दरवाज़ा हमने बंद कर दिया है और चाबी शायद खो दी है. हम बस बंद दरवाज़े कि तरह आँखें मूंदे अपनी ज़िन्दगी को खेते चले जा रहे हैं. बिना बात का हिसाब जोड़े न जाने किस मुगालते में हैं.
उम्मीद करता हूँ कि यह चित्र आप सब को पसंद आएगा.
ये चित्र स्टिल लाइफ श्रेणी के अर्न्तगत आता है

आपका अनुज
मनुज मेहता


Wednesday, May 6, 2009

बादल को घिरते देखा था

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दिल्ली में अभी दो दिनों पहले ही शाम को, मौसम का मिज़ाज़ बदल गया था। शायद इंद्र को लोगों को गर्मी से बेहाल होते देख दया आयी होगी। लेकिन दया बहुत थोड़ी देर के लिए आई। फिर भी उस वक़्त शमशेर अहमद खान अपना कैमरा लेकर मुश्तैद थे, उसकी इस दरियादिली का दस्तावेज बनाने के लिए। आप भी देखें, शायद इस भीषण गर्मी में थोड़ी शीतलता का एहसास हो!
फोटोग्राफर- शमशेर अहमद खाँ


Friday, May 1, 2009

ऐसा भी जीना!

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ये भी एक जीवन है, इस पूरे हफ्ते मुझे street people के साथ काम करने का मौका मिला, काफी तस्वीरें लीं, उनमें से कई तो बहुत ही सवेंदनशील हैं। ये बूढ़ी औरत रेल पटरी के पास बैठी थी, या यूँ कहें की यह ही इसका घर है। बदबू से भरा इलाका और इधर-उधर घुमते आवारा कुत्ते और जानवार। यह देख कर और भी दुःख हुआ जब इस औरत ने इस कुत्ते के मुँह से कुछ छीन कर खा लिया। मेरे लिए वो दिल-दहल जाने वाला लम्हा था।

मनुज मेहता