(हिन्दुस्तानी नृत्य पेश करती रशियन कलाकार)
(बैले नृत्य पेश करती हिन्दुस्तानी कलाकार)
(मुख्य अतिथि, शकील अहमद)
छायाकार - जॉय कुमार (हिंद युग्म)
Posted by Manuj Mehta at 12:38 PM
Labels: druzbaa, music release, russaian cultural centre
"हाशिये के लोग" शीर्षक को आगे बढाते हुए मैं आपको वृन्दावन लेकर चलता हूँ.
सुबह सुबह का वक्त था, शायद ६ बजे होंगे, रात को ना आ सकने वाली नींद और कमरे में सीलन की गंध की वजह से मैं वहां और न रुक सका. बहुत कोशिश के बाद एक धर्मशाला में जगह मिल पायी थी. अपनी कार को बाहर ही पार्क किया था और शूट करने चले गए थे मैं और मेरे मित्र.
हर बार "ठाकुर जी आश्रम" में वातानुकुलित कमरा मिल जाता था, तो वृन्दावन में समय आराम से कटता था, पर इस बार तो बाप रे बाप! इतनी भीड़, ठाकुर जी आश्रम के मेनेजर ने तो मेरा चेहरा देखते ही कहा, "अरे साहब आप इस वक्त क्यूँ चले आए? क्या अभी डॉक्युमेंटरी फ़िल्म ख़त्म नही हुई? इस बार तो बहुत भीड़ है, एक तो २६ जनवरी की छुट्टी और ऊपर से आसाराम का प्रवचन. मेरे यहाँ तो व्यवस्था के नाम पर पानी ही पिला सकता हूँ." मैं ख़ुद को कोस रहा था की दिल्ली से निकलते वक्त ही बुकिंग करा लेनी चाहिए थी.
मैंने बहुत कोशिश की किसी तरह कुछ जुगाड़ हो जाए पर शायद ठाकुर (कृष्ण) जी की यही इच्छा. समय भी कम था, दोपहर हो चुकी थी और अभी तक शूट के नाम पर कैमरा भी सेट नही कर पाये थे. बहुत कोशिशों और कई होटल में ना सुनने के बाद कहीं जाकर एक छोटी सी "रोहतक धर्मशाला" में कमरा मिल पाया (गनीमत है की मेरा ददिहाल वहां का है) तो थोडी हरयाणवी बोलने पर एक कमरा मिल ही गया. लकिन जनाब धर्मशाला ऐसी की बस सामान ही रखा और भागे. देर रात तक फ़िल्म उतारने और खा पीकर जब वापिस लौटे तो पुरानी चादर,रजाई और तकिओं से आती बदबू को देखते ही सोने की इच्छा तो कुलांचे मारती कहीं दूर ही भाग गई.
तो जनाब जैसे तैसे मच्छरों को गाते सुनते रात बितायी, वो तो भला हो उस छोटू का (जी हाँ यहाँ भी एक छोटू ढूँढ ही लिया) जिसने १० रुपए लेकर तकिये के गिलाफ और रजाई के लिहाफ बदल दिए थे.
अरे! मुझे तो आपको बताना था इस तस्वीर के बारे में और अपना दुखडा ले बैठा, तो मैं सुबह सुबह ही निकल पड़ा अपना स्टिल कैमरा लेकर यमुना जी की ओर. धुंध इतनी की हाथ को हाथ दिखाई न दे.
यमुना जाते हुए एक गली के किनारे पर लगा की कोई बैठा है. पास जाने पर यह महाशय मिले, और धुंध में से निकले, कैमरा लिए एक जिन् यानि की मुझे देखते ही चौंक गए.
आप चेहरे पर अचानक से कुछ हुआ देख सकते हैं.
बाद में पूछा तो इनकी भी वही कहानी, यमुना के किनारे भीख मांगना. तो भइया अपना दुखडा सुनाने के बाद ये भी शामिल हो गए "हाशिये के लोग" के हमारे शीर्षक में.
उम्मीद करता हूँ, जो फुर्सत का समय मैंने आपसे बात करते हुआ काटा, आपको अच्छा लगा होगा. जल्द ही मिलता हूँ एक और नई तस्वीर के साथ.
शुक्रिया
मनुज मेहता
Posted by Manuj Mehta at 4:47 PM
Labels: beggars, hashiye ke log, Manuj Mehta, vrindavan
आज का तीसरा "हाशिये के लोग" विषय का चित्र प्रस्तुत है, उम्मीद करूंगा की आप सभी अपने विचारों और टिप्पणियों से हिन्दयुग्म के इस प्रयास का साथ देंगे.
हमे हर पल आपके सहयोग, परामर्श और मार्गदर्शन की ज़रूरत है.
आपका अपना
मनुज मेहता
ये चित्र वृन्दावन में यमुना के किनारे बैठे हुए एक भिखारी का है.
Posted by Manuj Mehta at 12:57 PM
Labels: beggars, black and white, Chitrawali, hindyugm, India, Manuj Mehta, portraits, vrindavan
"हाशिये के लोग" विषय का दूसरा चित्र लेकर आपके समक्ष हाज़िर हूँ.
यह चित्र भी हज़रत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से है. उम्मीद करता हूँ कि आपको यह चित्र पसंद आएगा.
यह चित्र दरगाह के अन्दर के कुछ बुजुर्ग फकीरों में से एक का है.
Posted by Manuj Mehta at 10:04 AM
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"सबसे बड़ी गरीबी और भेद भाव है, जब मैं और आप ग्लोबल वार्मिंग पर सम्मेलन करते हैं, और चाँद पर सफल चंद्रयान और उससे मिली तस्वीरों में ख़ुद को विकासशील मानते हैं, वहीँ हाशिये के लोग अपनी अगले वक्त की रोटी के लिए शहर के हर कूडेदान, गटर और कोने को छान रहे होते हैं.
उनके होने न होने से शायद किसी को कोई फर्क नही पड़ता इसलिए सोचने की ज़रूरत भी महसूस नही होती, अलबत्ता कोई मुझसे पूछता तो शायद मैं कहता, अमां यार कुछ और बात करो.
पर जब मैं इन लोगों के करीब गया तो इनकी दुनिया दिलचस्प मिली. गरीबी, दुःख, पीड़ा तो थी ही,पर जिंदादिली और बेफिक्री भी मिली,
वो कहते हैं न, जब कुछ है ही नही, तो खोने का गम क्या...
तो कुछ ऐसे ही लोगो को हम चित्रावली के सशक्त माध्यम से आप तक पहुँचने की कोशिश में लगे हैं.
इस विषय "हाशिये के लोग" का मेरा पहला चित्र पेश है.
आप सभी के विचार और टिप्पणियों का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है. आपकी उपस्थिति मुझे प्रोत्साहित करेगी कि मैं इस मंच तक वो विषय ला पाऊँ जो हमारी रोज़मर्रा का हिस्सा होकर भी अलग है....
आपका अपना
मनुज मेहता
ये चित्र हज़रत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास एक भिखारी का है.
Posted by Manuj Mehta at 1:46 PM
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