हाशिये के लोग III
आज का तीसरा "हाशिये के लोग" विषय का चित्र प्रस्तुत है, उम्मीद करूंगा की आप सभी अपने विचारों और टिप्पणियों से हिन्दयुग्म के इस प्रयास का साथ देंगे.
हमे हर पल आपके सहयोग, परामर्श और मार्गदर्शन की ज़रूरत है.
आपका अपना
मनुज मेहता
ये चित्र वृन्दावन में यमुना के किनारे बैठे हुए एक भिखारी का है.
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17 पाठकों का कहना है :
" जीवन बीत रहा यूँही चिंता और सोच मे....आंखों मे बेबसी और लाचारी..लिए "
Regards
मनुज जी,
आप चाहें तो हर चित्र के साथ उसकी थोड़ी सी भूमिका, थोड़ी स्टोरी भी जोड़ सकते हैं। और रुचिकर हो जायेंगे चित्र।
बहुत बढ़िया कैमराई
वाह बहुत सुन्दर चित्र है मनुज जी। आप एक संवेदन शील कवि ही नहीं कुशल चित्रकार भी हैं। भले ही वो छाया चित्र हो।
tak raha hai kab se bebas
lachari ki jhurriyon ki beech
kaash koi nav kiran chamke...
bolti hui tasveer Manju! wonderful job
shikha varshney
aap sabhi ka shukriya is chaya chitr ko pasand karne ke liye.
manuj mehta
manuj ji vrindavan me maine bahut baar aise sainkado bhikhaari dekhe hai , bachapan se dekhate aaye hai lekin dukh ki baat hai ki shree krishan ki maaya nagari me ye log subah aa kar yamuna kinare pankti laga kar apni nishchit jagah par baithate hai aur fir uth jaate hai , jaise jeevan us se baahar hai hi nahi . itani dayneey haalat dekhkar bahut dukh hota hai , kyonki maine unko vaastvikta me dekha hai to mai achchi tarah samajhati hoo unki dayaneey aur maarmik haalat ko . jaisa ki shailesh ji ne kaha ki aap chitron ke saath thoda parichay bhi deejiye , unka vichaar achcha hai .
सीमा जी
आपका और शैलेश का सुझाव अच्छा है, आपने "हाशिये के लोग" का पहला चित्र देखा होगा उसमे मैंने काफ़ी विस्तार से इस बात को रखा है.
बाकी समय इतना नही निकल पाता कि हर चित्र के साथ भूमिका लिखी जा सके और मैं यह मानता हूँ कि अगर चित्र के साथ भूमिका लिखी जाए तो चित्र के अपने पास कहने को क्या रह जायेगा?
good work again champ
SOONI AANKHON SE DEKHTA HUA AUR BIN BOLE SAB KUCHH BOLTA HUA CHITR....BAHUT HI ACHCHHA..
NEERAJ
छायाचित्रों के माध्यम से आप हमेशा हीं कमाल करते रहते हैं। इस बार भी वह कमाल खुलकर सामने आया है।
बधाई स्वीकारें।
फ़िर उन निराश नयनों की
जिनके आंसू सूखे हैं ,
उस प्रलय दशा को देखा
जो चिर -वंचित भूखे हैं
जय शंकर प्रसाद
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