Sunday, November 8, 2009

कुछ चेहरे, कई कहानियां







छायाचित्र ~ मनुज मेहता


Monday, October 26, 2009

पोट्रेट्स







छाया चित्र - मनुज मेहता


Friday, October 23, 2009

ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय !






छायाचित्र ~ मनुज मेहता


Wednesday, May 20, 2009

पानी की क़िल्लत

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यह चित्र गर्मी के मौसम का है, जब फोटोग्राफर के शहर लखनऊ में पानी की क़िल्लत थी। कई क्षेत्रों में पानी नहीं आ रहा था। पानी के लिए हर-ओर हाहाकार था। जहाँ एक तरफ शहर पानी की किल्लत का सामना कर रहा था, वही दूसरी ओर लाखों लीटर पानी इस तरह से बह रहा था।


फोटोग्राफर- अनुज अवस्थी।


Wednesday, May 13, 2009

एक मासूम चेहरा


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क्या कहूं न जाने कितने ही अल्फाज़ मेरी सांस के सांस में अटक गए हैं. शायद मेरे पास शब्दों की कमी है आज इस चेहरे और इसमें छुपी संवेदनाओं को लिखने के लिए. ये छोटी सी लड़की एक स्ट्रीट चाइल्ड है, जिसकी ना तो कोई माँ है न ही कोई पिता पर इसके पास संवेदनाओं का एक पहाड़ है जिसे यह बांटना चाहती है किसी के साथ. ये मुझे सड़क के किनारे कुछ इसी के साथ के बच्चों के साथ खेलती मिली, मैंने कुछ समय इसके साथ बिताया और जो कुछ सुना इसके बीते समय और और इसके आज के बारे में तो आँखें भर आयीं. आप खुद देखिये और समझिये की ये चेहरा क्या कह रहा है.

आपका अनुज
मनुज मेहता


Monday, May 11, 2009

ये भी माँ है

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छायाचित्रकार- मनुज मेहता


Friday, May 8, 2009

ज्ञान को कोई दरवाजा कहाँ रोक पाया है

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पुरानी दिल्ली की गलियों में जब भी गुज़रता हूँ तो कई अलग बातों का अनुभव होता है. जैसे की सुना करते थे कि ज्ञान को कोई नहीं रोक सकता, कोई ताकत नहीं छुपा सकती. अब इसे ही देखिये कि एक बंद दरवाज़े पर कितना कुछ लिख दिया गया है, जैसे कि ज़िन्दगी भर का किसी ने जोड़ घटा यहीं निकाल लिया हो.
क्या ज़िन्दगी का फलसफा भी यही नहीं है. कितनी ही चीज़ों कि तरफ तो हम अपने को बंद ही रखते है, शायद प्यार और अपनेपन का भी दरवाज़ा हमने बंद कर दिया है और चाबी शायद खो दी है. हम बस बंद दरवाज़े कि तरह आँखें मूंदे अपनी ज़िन्दगी को खेते चले जा रहे हैं. बिना बात का हिसाब जोड़े न जाने किस मुगालते में हैं.
उम्मीद करता हूँ कि यह चित्र आप सब को पसंद आएगा.
ये चित्र स्टिल लाइफ श्रेणी के अर्न्तगत आता है

आपका अनुज
मनुज मेहता


Wednesday, May 6, 2009

बादल को घिरते देखा था

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दिल्ली में अभी दो दिनों पहले ही शाम को, मौसम का मिज़ाज़ बदल गया था। शायद इंद्र को लोगों को गर्मी से बेहाल होते देख दया आयी होगी। लेकिन दया बहुत थोड़ी देर के लिए आई। फिर भी उस वक़्त शमशेर अहमद खान अपना कैमरा लेकर मुश्तैद थे, उसकी इस दरियादिली का दस्तावेज बनाने के लिए। आप भी देखें, शायद इस भीषण गर्मी में थोड़ी शीतलता का एहसास हो!
फोटोग्राफर- शमशेर अहमद खाँ


Friday, May 1, 2009

ऐसा भी जीना!

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ये भी एक जीवन है, इस पूरे हफ्ते मुझे street people के साथ काम करने का मौका मिला, काफी तस्वीरें लीं, उनमें से कई तो बहुत ही सवेंदनशील हैं। ये बूढ़ी औरत रेल पटरी के पास बैठी थी, या यूँ कहें की यह ही इसका घर है। बदबू से भरा इलाका और इधर-उधर घुमते आवारा कुत्ते और जानवार। यह देख कर और भी दुःख हुआ जब इस औरत ने इस कुत्ते के मुँह से कुछ छीन कर खा लिया। मेरे लिए वो दिल-दहल जाने वाला लम्हा था।

मनुज मेहता


Thursday, April 30, 2009

आँखों देखा स्वर्ग

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हिन्द-महासागर का मोहक नज़ारा
स्थान-हिंद महासागर (लंग्कावी - मलेशिया)
फोटोग्राफर- नितिन जैन

अंदाज़ा लगायें दिन है या रात?


Tuesday, April 28, 2009

एक बचपन ऐसा भी

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यह चित्र गोमती नगर क्षेत्र का है जहां एक बालिका अपने कद से लंबा कूड़े का झोला अपने कंधे पर लाद कर जा रही है। उसके चेहरे की विवशता भरे भावों ने फोटोग्राफर को यह चित्र लेने पर मजबूर कर दिया। यह चित्र एक प्रश्नचिन्ह है उन सभी के लिये जो इस समाज में रह कर ऐसे दृष्यों को बेचारगी या तरस का भाव दिखाकर टाल देते हैं।


फोटोग्राफर- अनुज अवस्थी। शहर लखनऊ के निवासी। लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक एवं परास्नातक। स्थानीय अखबारों में फीचर लेखन व प्रेस फोटोग्राफी का शौक। वर्तमान में पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम में आई0ई0सी0 अधिकारी के पद पर कार्यरत। क्षय रोग से संबंधित सभी सूचनाओं को लोगों तक पहुँचाकर उन्हें विभिन्न माध्यमों द्वारा जागरूक करने में प्रयासरत।


Monday, April 27, 2009

ईश्वर की एक और अद्भुत रचना

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जल के अंदर की मनमोहक दुनिया
स्थान-अंडरवाटर वर्ल्ड (लंग्कावी - मलेशिया)
फोटोग्राफर- नितिन जैन


Saturday, April 25, 2009

फिर वादा करके जाता सूरज

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पेनांग बीच (समुद्र का किनारा) पर होता सूर्यास्त
स्थान-लंग्कावी (मलेशिया)
फोटोग्राफर- नितिन जैन


Thursday, April 23, 2009

अपनी ही पृथ्वी पर

नितिन जैन के रूप में हिन्द-युग्म को नया प्रतिभावान फोटोग्राफर मिला है। पिछली बार आपने व्हाइट सेंड बीच, मेंग्रोव नदी और हिन्द महासागर के चित्र देखे। आज विश्व पृथ्वी दिवस पर देखिए इन्हीं के कैमरे से अपनी धरती का एक खूबसूरत नज़ारा-

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हिंद महासागर में एक मोहक दृश्य
स्थान - हिंद महासागर (लंग्कावी - मलेशिया)


Sunday, April 19, 2009

nature in its best


ये तस्वीर उन दिनों की है जब मेरा प्रेम पहाड़ और पहाड़ की खूबसूरती की ओर अपनी चरम पर था, मेरा लगाव पहाड़ से हमेशा से ही रहा है, बचपन से माँ ने हिमालय की इतनी कहानियां सुनाई कि लगता था की न जाने हिमालय और उसके सौन्दर्य को कभी समेट भी पाऊँगा या नहीं. इतनी विचित्र कहानियां कहानियां और उसके इतने भोले पात्र. लगता था कि किस दुनिया की बात कर रही है माँ, कि क्या वाकई में ऐसी जगह है जहाँ देव खुद वास करने को आतुर होते हैं? क्या वाकई धरा पर कोई देव भूमि है? पंचतंत्र की इन्ही कहानियो ने मन में ऐसी जगह बनाई की मन मचलने लगा हिमालय की वादियों में विचरने को. को शायद भोले मन की कामना रही होगी या तीव्र इच्छा की पिछले कुछ वर्षों में कई बार सौभाग्य प्राप्त हुआ हिमालय की गोद में सर रखने का और उसके आँचल में विचारने का, वाकिये देव भूमि है ये. कभी समय हो तो रामनगर से ऊपर हो आइये, प्रकृति अपनी खूबसूरती की चरम सीमा तक बिखरी पड़ी है.
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Saturday, April 18, 2009

व्हाइट सेंड बीच, मेंग्रोव नदी और हिन्द महासागर

आज से हम एक नये फोटोग्राफर के चित्रों के प्रदर्शनी लगाने जा रहे हैं। हिन्द-युग्म से नवम्बर २००८ में जुड़े सॉफ्टवेयर इंजीनियर नितिन जैन को फोटोग्राफी का भी शौक है। पिछले दिनों ये मलेशिया और इंडोनेशिया की यात्रा पर थे। वहाँ की सुनहली यादों को इन्होंने कैमरे में कैद किया है ले आये हैं आपके लिए। आप खुद देखें कि दक्षिण एशिया कितना सुंदर है !

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होटल (जहाँ नितिन रुके थे) के पीछे से समुद्र का एक सुन्दर दृश्य
स्थान - व्हाइट सेंड बीच (लंग्कावी - मलेशिया)


छोडो तैरना, उड़ चलें सागर से अम्बर तक
स्थान - व्हाइट सेंड बीच (लंग्कावी - मलेशिया)


मिलन की राह
स्थान - मेंग्रोव नदी का हिंद महासागर से मिलाप (लंग्कावी - मलेशिया)


Friday, April 17, 2009

Divija


आज सुबह की मेरी शुरुआत इस तस्वीर से हुई. मैं ऑफिस जाने के लिए तयार हो रहा था और इधर मेरी दो साल की बेटी को शरारतें सूझ रही थी.
आप समझ सकते हैं की ऐसे में न आप नाराज़ ही हो सकते हैं और न ही उनके साथ खेल सकते हैं. बस उसकी इन्ही शरारतों के बीच मैंने अपना कैमरा निकाला और कुछ तस्वीरें खींचने की कोशिश की, पर यकीन मानिये इन छोटे नवाबों की तस्वीरें लेना भी कहाँ आसान हैं. बस किसी तरह दो एक तस्वीरें लेकर निकला ऑफिस को, कैमरा साथ ही ले आया था और उसी से ये तस्वीर अपलोड कर रहा हूँ.

ये है मेरी दो साल की नन्ही शैतान, मेरी बेटी "दिविजा"

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Wednesday, April 15, 2009

Delhi-6


ये तस्वीर मेरे हाल ही में खींचे दिल्ली-६ की श्रृंखला में से है. आप पीछे के भाग में जामा मस्जिद को देख सकते हैं. दिन की आखिरी किरण के साथ यह उस दिन की मेरी आखिरी तस्वीर थी I
चांदनी चौक यानी दिल्ली- ६, Portrait, Street और Candid photography के लिए हमेशा ही पहली पसंद रहा है. परन्तु पुरानी दिल्ली की गलियों में तस्वीर खींचना हमेशा ही चुनौती भरा रहता है, गलियां इतनी संकरी हैं कि तस्वीर के लिए सही रौशनी मिलना बहुत मुश्किल होता है और उस पर इतनी भीड़ में सही एंगल का मिल पाना पेरशानी भरा रहता है, लेकिन पुरानी दिल्ली कि तस्वीरों का मुकाबला और कोई जगह नहीं कर सकती शायद यही वजह है कि यह जगह हर फोटोग्राफर की exhibition का हिस्सा बनती है.

उम्मीद है की ये तस्वीर आपको पसंद आएगी. इस चित्र को बड़ा कर के देखने के लिए, कृपया इस पर क्लिक करें.

धन्यवाद सहित
आपका अनुज
मनुज मेहता


Sunday, February 22, 2009

रशियन सेंटर ऑफ़ साइंस एंड कल्चर में हुए गाला सम्मलेन की झलकियाँ


(हिन्दुस्तानी नृत्य पेश करती रशियन कलाकार)

(बैले नृत्य पेश करती हिन्दुस्तानी कलाकार)
(मुख्य अतिथि, शकील अहमद)



छायाकार - जॉय कुमार (हिंद युग्म)


Thursday, February 19, 2009

हाशिये के लोग IV


"हाशिये के लोग" शीर्षक को आगे बढाते हुए मैं आपको वृन्दावन लेकर चलता हूँ.

सुबह सुबह का वक्त था, शायद ६ बजे होंगे, रात को ना आ सकने वाली नींद और कमरे में सीलन की गंध की वजह से मैं वहां और न रुक सका. बहुत कोशिश के बाद एक धर्मशाला में जगह मिल पायी थी. अपनी कार को बाहर ही पार्क किया था और शूट करने चले गए थे मैं और मेरे मित्र.

हर बार "ठाकुर जी आश्रम" में वातानुकुलित कमरा मिल जाता था, तो वृन्दावन में समय आराम से कटता था, पर इस बार तो बाप रे बाप! इतनी भीड़, ठाकुर जी आश्रम के मेनेजर ने तो मेरा चेहरा देखते ही कहा, "अरे साहब आप इस वक्त क्यूँ चले आए? क्या अभी डॉक्युमेंटरी फ़िल्म ख़त्म नही हुई? इस बार तो बहुत भीड़ है, एक तो २६ जनवरी की छुट्टी और ऊपर से आसाराम का प्रवचन. मेरे यहाँ तो व्यवस्था के नाम पर पानी ही पिला सकता हूँ." मैं ख़ुद को कोस रहा था की दिल्ली से निकलते वक्त ही बुकिंग करा लेनी चाहिए थी.

मैंने बहुत कोशिश की किसी तरह कुछ जुगाड़ हो जाए पर शायद ठाकुर (कृष्ण) जी की यही इच्छा. समय भी कम था, दोपहर हो चुकी थी और अभी तक शूट के नाम पर कैमरा भी सेट नही कर पाये थे. बहुत कोशिशों और कई होटल में ना सुनने के बाद कहीं जाकर एक छोटी सी "रोहतक धर्मशाला" में कमरा मिल पाया (गनीमत है की मेरा ददिहाल वहां का है) तो थोडी हरयाणवी बोलने पर एक कमरा मिल ही गया. लकिन जनाब धर्मशाला ऐसी की बस सामान ही रखा और भागे. देर रात तक फ़िल्म उतारने और खा पीकर जब वापिस लौटे तो पुरानी चादर,रजाई और तकिओं से आती बदबू को देखते ही सोने की इच्छा तो कुलांचे मारती कहीं दूर ही भाग गई.
तो जनाब जैसे तैसे मच्छरों को गाते सुनते रात बितायी, वो तो भला हो उस छोटू का (जी हाँ यहाँ भी एक छोटू ढूँढ ही लिया) जिसने १० रुपए लेकर तकिये के गिलाफ और रजाई के लिहाफ बदल दिए थे.

अरे! मुझे तो आपको बताना था इस तस्वीर के बारे में और अपना दुखडा ले बैठा, तो मैं सुबह सुबह ही निकल पड़ा अपना स्टिल कैमरा लेकर यमुना जी की ओर. धुंध इतनी की हाथ को हाथ दिखाई न दे.

यमुना जाते हुए एक गली के किनारे पर लगा की कोई बैठा है. पास जाने पर यह महाशय मिले, और धुंध में से निकले, कैमरा लिए एक जिन् यानि की मुझे देखते ही चौंक गए.

आप चेहरे पर अचानक से कुछ हुआ देख सकते हैं.

बाद में पूछा तो इनकी भी वही कहानी, यमुना के किनारे भीख मांगना. तो भइया अपना दुखडा सुनाने के बाद ये भी शामिल हो गए "हाशिये के लोग" के हमारे शीर्षक में.

उम्मीद करता हूँ, जो फुर्सत का समय मैंने आपसे बात करते हुआ काटा, आपको अच्छा लगा होगा. जल्द ही मिलता हूँ एक और नई तस्वीर के साथ.

शुक्रिया
मनुज मेहता


Thursday, February 12, 2009

हाशिये के लोग III

आज का तीसरा "हाशिये के लोग" विषय का चित्र प्रस्तुत है, उम्मीद करूंगा की आप सभी अपने विचारों और टिप्पणियों से हिन्दयुग्म के इस प्रयास का साथ देंगे.
हमे हर पल आपके सहयोग, परामर्श और मार्गदर्शन की ज़रूरत है.

आपका अपना
मनुज मेहता



ये चित्र वृन्दावन में यमुना के किनारे बैठे हुए एक भिखारी का है.


Wednesday, February 11, 2009

हाशिये के लोग II


"हाशिये के लोग" विषय का दूसरा चित्र लेकर आपके समक्ष हाज़िर हूँ.
यह चित्र भी हज़रत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से है. उम्मीद करता हूँ कि आपको यह चित्र पसंद आएगा.


यह चित्र दरगाह के अन्दर के कुछ बुजुर्ग फकीरों में से एक का है.


Tuesday, February 10, 2009

हाशिये के लोग (I)

"सबसे बड़ी गरीबी और भेद भाव है, जब मैं और आप ग्लोबल वार्मिंग पर सम्मेलन करते हैं, और चाँद पर सफल चंद्रयान और उससे मिली तस्वीरों में ख़ुद को विकासशील मानते हैं, वहीँ हाशिये के लोग अपनी अगले वक्त की रोटी के लिए शहर के हर कूडेदान, गटर और कोने को छान रहे होते हैं.

उनके होने न होने से शायद किसी को कोई फर्क नही पड़ता इसलिए सोचने की ज़रूरत भी महसूस नही होती, अलबत्ता कोई मुझसे पूछता तो शायद मैं कहता, अमां यार कुछ और बात करो.

पर जब मैं इन लोगों के करीब गया तो इनकी दुनिया दिलचस्प मिली. गरीबी, दुःख, पीड़ा तो थी ही,पर जिंदादिली और बेफिक्री भी मिली,
वो कहते हैं न, जब कुछ है ही नही, तो खोने का गम क्या...

तो कुछ ऐसे ही लोगो को हम चित्रावली के सशक्त माध्यम से आप तक पहुँचने की कोशिश में लगे हैं.

इस विषय "हाशिये के लोग" का मेरा पहला चित्र पेश है.

आप सभी के विचार और टिप्पणियों का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है. आपकी उपस्थिति मुझे प्रोत्साहित करेगी कि मैं इस मंच तक वो विषय ला पाऊँ जो हमारी रोज़मर्रा का हिस्सा होकर भी अलग है....

आपका अपना
मनुज मेहता





ये चित्र हज़रत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास एक भिखारी का है.